वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज़ जीतने के बाद टीम इंडिया ने जमकर जश्न मनाया। लेकिन इस बार ट्रॉफी से ज़्यादा चर्चा कप्तान Shubman Gill Dhoni tradition new style की हो रही है। गिल ने मैच जीतने के बाद ट्रॉफी रवींद्र जडेजा को थमा दी। अब तक परंपरा रही है कि ट्रॉफी टीम के सबसे नए खिलाड़ी को दी जाती है।
यह परंपरा एमएस धोनी के वक्त से चली आ रही है। फैंस को लगा कि गिल ने इसे तोड़ दिया, लेकिन बाद में सच सामने आया कि धोनी की परंपरा आज भी बरकरार है, बस अंदाज़ थोड़ा बदल गया।
Shubman Gill Dhoni tradition new style
गिल का फैसला देखकर फैंस रह गए हैरान
जैसे ही गिल ने जीत के बाद ट्रॉफी जडेजा को दी, सोशल मीडिया पर हलचल मच गई। लोगों ने कहा कि धोनी की खूबसूरत परंपरा को तोड़ दिया गया। कई पुराने फैंस ने ट्वीट करके लिखा कि धोनी हमेशा टीम के नए खिलाड़ी को ट्रॉफी सौंपते थे ताकि उसका हौसला बढ़े।

लेकिन इस बार जडेजा के हाथों में ट्रॉफी देखकर लोगों को थोड़ा अजीब लगा। हालांकि गिल ने शांत रहकर सबको दिखा दिया कि असली टीम स्पिरिट क्या होती है।
जडेजा ने किया सबको हैरान, निभाई परंपरा
फैंस के चौंकने के कुछ ही पल बाद सच्चाई सामने आ गई। रवींद्र जडेजा ने ट्रॉफी को हवा में लहराया और फिर उसे नए खिलाड़ी एन जगदीशन को दे दिया। यानी परंपरा टूटी नहीं थी, बल्कि उसे थोड़ा नए अंदाज़ में निभाया गया। इस छोटे से पल ने टीम इंडिया की एकता और पुरानी परंपरा दोनों को फिर से दिखा दिया।

जडेजा के इस कदम की तारीफ हर जगह हो रही है, और फैंस कह रहे हैं कि “धोनी की आत्मा अब भी टीम इंडिया के अंदर जिंदा है।”
गिल की कप्तानी में दिखी टीम की एकजुटता
शुभमन गिल के कप्तान बनने के बाद टीम में नई ऊर्जा दिखाई दी है। इस सीरीज़ में खिलाड़ियों के बीच का तालमेल और आपसी भरोसा देखने लायक था। गिल ने जिस तरह से हर खिलाड़ी को बराबर मौका दिया, उससे साफ है कि वह टीम को परिवार की तरह देखते हैं। उनका यह ट्रॉफी वाला फैसला बताता है कि उनके लिए हर खिलाड़ी की इज़्ज़त बराबर है, चाहे वह सीनियर हो या जूनियर।
सोशल मीडिया पर फैन्स ने की जमकर तारीफ
गिल और जडेजा की ये छोटी-सी पहल सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गई। ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लोगों ने इस पल को शेयर करते हुए लिखा “धोनी की परंपरा बदली नहीं, बस नए चेहरे से निभाई जा रही है।” बहुत से फैन्स ने इसे भारतीय क्रिकेट की “नई शुरुआत” बताया। इससे साफ है कि जब भावना सच्ची हो, तो परंपरा खुद-ब-खुद आगे बढ़ती है।
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